जटिलताएँ (revised)
"जटिलताएँ" – सी. आचार्य
मैंने कुएँ की गहराई तक खोदा,
फिर मारीआना की खाई तक पहुँचा।
क्षितिज के पार उड़ चला मैं,
बेटे संग चाँद तक पहुँच गया मैं।
पेड़ों पर चढ़ा करता था कभी,
पर्वतों की चोटी भी आसान लगती अभी।
मैंने कुएँ की गहराई तक खोदा,
फिर मारीआना की खाई तक पहुँचा।
क्षितिज के पार उड़ चला मैं,
बेटे संग चाँद तक पहुँच गया मैं।
पेड़ों पर चढ़ा करता था कभी,
पर्वतों की चोटी भी आसान लगती अभी।
शेरों को मिटा दिया ज़मीन से,
और ग्लेशियरों को झुका दिया घुटनों से।
कभी अपने कबीले के संग गाता था गीत,
अब जीवन की जटिलताओं में खो गया हे प्रीत।
और ग्लेशियरों को झुका दिया घुटनों से।
कभी अपने कबीले के संग गाता था गीत,
अब जीवन की जटिलताओं में खो गया हे प्रीत।