Aasman aur Samandar

"आसमान और समंदर"- सि. आचार्य

ऐ समंदर, तू आसमां बन जा, 
और आसमां, तू समंदर। 
दिन में हे मछली गिरती, 
रात में हे जलपरी। 
ज़मीन में हे तारे और टूटते, 
चाँद को देख सब घबराते। 
भगवान ने हमें ही भेजा, 
हमने ये क्या कर दिया?

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