patthar (2nd revised)
"पत्थर" – सी. आचार्य
येही है वो पत्थर, जहाँ बैठ मैंने पानी, मछली और पवन का है आनंद लिया।
यहीं से ही मेरे दोस्त को तैरते देख, मगरमच्छ चिढ़ाया।
वो अब कहाँ होगी? यह भी खुद को यहीं से समझाया।
खिल सकते हैं पत्थर में घास, फूल और पत्ते,
बस कोई माटी समझ के तो देखे।
येही है वो पत्थर, जहाँ बैठ मैंने पानी, मछली और पवन का है आनंद लिया।
यहीं से ही मेरे दोस्त को तैरते देख, मगरमच्छ चिढ़ाया।
वो अब कहाँ होगी? यह भी खुद को यहीं से समझाया।
खिल सकते हैं पत्थर में घास, फूल और पत्ते,
बस कोई माटी समझ के तो देखे।